*रेणु जयंती विशेष* लेखक-- अतुल मल्लिक "अनजान"
पाठको !यहाँ बता दूं कोसी अंचल साहित्यकारों की भूमि रही है ।फणीश्वर नाथ "रेणु" यहाँ के प्रकाश-स्तम्भ हैं।हमारे साहित्य-समाज में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त "रेणु" जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं।"रेणु" एक साहित्यकार ही नहीं बल्कि खुद एक साहित्य हैं।"रेणु" जी के संबंध में जब मैं आँचलिक उपन्यासकार व कथाकार श्री विश्वनाथ दास "देहाती" जी से बातचीत प्रारंभ की तो पहले वो भावुक हो गए ।यहाँ यह बताना न्यायसंगत प्रतीत हो रहा है कि "रेणु" जी का जन्म 04 मार्च 1921 को एवं "देहाती" जी का जन्म 28 अगस्त 1929 को इसी कोसी अंचल की पावन-भूमि पर हुआ था ।उम्र का फासला आठ वर्ष दोनों के दरम्यान ।उन्होंने बताया कि एक दिन पुस्तक लेखन के संदर्भ में बातचीत हो रही थी, तब तक हमारा तीन उपन्यास सुन्दरी, चिता और भिखारिन प्रकाशित हो चुका था ।मैंने "रेणु" जी से लेखन के संबंध में राय मांगी तो उन्होंने जो कहा वह शब्द आज भी मेरे कानों में गूंजते हैं।"रेणु" जी ने कहा-"बड़ी जगहों का चित्रण करने से हमारी किताब को प्रसिद्धि मिलेगी लोग ऐसा सोचते हैं।लेकिन जो आप देखते हैं,जो आप महसूस करते हैं उसे लिखिए।"इतना सुनकर मेरे मन में भी एक भाव पनपा। मैंने "रेणु" जी की इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर डायरी के पन्ने "याद" लिखा।मैं शिक्षक था,शिक्षक होने के कारण शिक्षा, शिक्षक, शिक्षार्थी एवं शिक्षा-जगत के तमाम पहलुओं से परिचित था,निकट संबंध था,खुद भोगा-जिया गया था एवं सारे पात्र हमारे ईर्द-गिर्द मौजूद थे, बस मैं लिपिबद्ध करता गया और हो गया एक पुस्तक प्रकाशित "याद" ।सच कहूं तो "याद" का प्रकाशन "रेणु" जी के प्रेरणा से ही संभव हो सका।इससे यह स्पष्ट होता है कि "रेणु" जी अपने सहकर्मियों को हमेशा उचित सलाह देते थे।लेखन के प्रति प्रोत्साहित करते थे ।"रेणु" आज भी है,"रेणु" हमेशा रहेंगे ।मुझे गर्व है कि मैं रेणु-माटी का हूं।रेणु जयंती की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
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