अंधेरा और उजाला हमेशा साथ ही रहता है कभी अंधेरा तो कभी उजाला जैसे कि दिन और रात जैसे हर सिक्के का दो पहलू यह अवश्यंभावी है उसी तरह से हर इंसान में अगर सच्चाई है अच्छाई है तो गलती भी है हम सब अपनी दोनों पहलुओं के साथ हीं हमेशा होते हैं समस्या वहां शुरू होती है जब एक इंसान अपनी गलती को गलती नहीं मानता है जब भी वह गलती करता है वह कोई ना कोई कारण बताता है किसी भी तरह से वह साबित करने की कोशिश करता है कि मुझसे जो कुछ भी हुआ वह रोका नहीं जा सकता था और मुझे मजबूरी में यह करना पड़ा हमेशा हीं वह परिस्थितियों को दोषी ढहराता है परंतु वहीं जब कोई दूसरा इंसान उसके सामने गलत कर जाता है तो वह उसकी किसी भी दलील को नहीं स्वीकार करता और उसे गलत साबित करने पर तुल जाता है चाहे सामने वाला कैसी भी कोशिश करें न उसे नकार देता है और यहीं पर गलती होते होते सामने वाले इंसान का जमीर मरने लगता और देखते देखते अपराध जन्म लेना शुरू कर देता है इसीलिए यह जरूरी है के हम सबसे पहले अपनी गलती का
आत्मावलोकन करें अपने अंधेरे को समझे यह बहुत बड़ी महानता है जब हम स्वयं न की गलती का न सिर्फ आंकलन करते हैं अपितु उसके लिए पश्याताप करते हैं उस गलती को सुधारने का प्रयास करते हैं और अपने सामने जिस भी इंसान को हम गलत साबित करने की कोशिश कर रहे हैं उसकी परिस्थितियों को समझें और यह भी कि हम खुद को गलती से निकालने के लिए प्रयासरत हों और लोगों की सहायता ले वही हम सामने वाले को भी सहायता दे भावनात्मक सहायता दे ताकि वह अपनी गलतियों से बाहर निकल सके इस तरह से शायद मेरे विचार से हम बहुत से अपराधों को रोक सकते है
इस चर्चा के तहत मां और अपराधी विषय पर चर्चा अत्यंत आवश्यक हो जाता है
हमारा समाज हमारा साहित्य हमारे दर्शन सभी बुद्धिजीवी हम सब एक सत्य से कभी इंकार नहीं कर सकते कि किसी भी बच्चे के जीवन में उसकी प्रथम शिक्षिका उसकी प्रथम गुरु माता ही होती है जिसने उसे जन्म दिया जिसने उसे जीवन पथ पर चलना सिखाया जिसने उसको अपना दूध पिला कर बड़ा किया वही प्रथम शिक्षिका होती है गुरु होती है इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कोई भी पेट से ही अपराधी पैदा नहीं होता है अपराध करने की प्रवृत्ति धीरे धीरे उसके अंदर पनपती जाती है जब पहली बार बच्चा झूठ बोलता है उसकी बदमाशी की शिकायत आती है वह किसी को शारीरिक नुकसान पहुँचाता है किसी को धोखा देता है तब अगर माता उसके उस गुनाह को ढक देती है और कहती है कि मेरी संतान गलत नहीं है तब एक अपराधी बड़ा हो रहा होता है जब एक बच्चा किसी पौधे को छोटे जीवों
को बेरहमी से खत्म करता है उन्हें तकलीफ़ देता है तब मां का मन जरा भी नहीं सचेत होता यह संतान भावना विहीन बन रहा है तब एक भावना शून्य व्यक्ति बड़ा हो रहा होता है आपने वह कहानी सुनी होगी यह ऐसी कहानी है जो बचपन से ही हमें पढ़ाई जाती है लगभग हर पढ़ने लिखने वाले के दिमाग में कहीं ना कहीं उस कहानी ने अपना घर जरूरत बनाया है वह कहानी है जिसमें एक अपराधी बेटा जेल में मिलने आई अपनी रोती मां को थप्पड़ मारता है और कहता है जिस दिन मैंने पहली चोरी की थी उसी दिन अगर तुमने मुझे रोक लिया होता उसी दिन तुमने उचित कदम उठाया होता और यह थप्पड़ उसी दिन तुमने मुझे जोर से मारा होता तो आज यह दिन देखने को नहीं मिलता और मैं भी एक अच्छे इंसानों की तरह इज़्ज़त के साथ मेहनत और सच्चाई की जिंदगी जीता होता तुम मुझसे मिलने रोती हुई जेल न आती
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