आज जब मैं अपनी 2010 की पुरानी डायरी पढ़ रही थी तो 14 जनवरी के पृष्ठ पर लिखा था -
"इस साल पुनः मेरी प्यारी बेस्ट फ्रेंड मेरी डायरी ने अपना पूरा सहयोग दिया कि मैं जिंदगी की चुनौतियों का सामना कर पाऊं." वहां उस दिन के पन्ने पर मैं ने और भी दो बातें लिखा था. परंतु यह बात की डायरी लिखना आपके लिए अपनी जिंदगी को सुचारु रुप से चलाने में और जिंदगी की कड़ी चुनौतियों का सामना करने में किस तरह सहायक होती है इस विचार से मैं कितनी प्रभावित हूं यह आज मैं ने लिख कर अभिव्यक्त करने की ठानी .
डायरी शब्द से हीं मुझे मेरे दादाजी की याद सहस्र आती है . डायरी शब्द मेरे साथ शायद जन्म से ही जुड़ी है .जब से होश संभाला डायरी शब्द मेरी मम्मी, पापा ,चाचा लोगों को बोलते सुना. बात कुछ यूं थी कि मेरे दादा जी डायरी लिखते थे ,जब मैं बड़ी हुई दुनियादारी समझने लगी तब मुझे पता चला कि उसमें तो शायद कुछ भी ज्यादा मेरे दादाजी नहीं लिखते थे .अपनी दिनचर्या लिखते थे ,पैसे का लेन-देन लिखते थे ,कहां गए किससे मिले यह लिखते थे और कुछ जरूरी बातें जो किसी से कहा हो या उन्होंने किसी से सुना हो जो कुछ भी बात उन्हें याद रखनी होती थी वह लिखकर हीं रात में सोते थे . उनकी डायरी बहुत ही छोटी होती थी . हाथ में मुट्ठी में आ जाए बस उतनी ही छोटी .
जैसा कि मुझे बताया गया कि जब मेरे पिताजी व चाचाजी सभी छोटे थे तब किसी की हिम्मत नहीं थी कि दादा जी की डायरी को हाथ भी लगा ले .बात उस समय की है जब गांव में पक्की सड़कें नहीं होती थीं. खेतों की मेड़ों पर से होकर ही रास्ता बना होता था. लोग पैदल ही आना जाना करते थे या बैलगाड़ी या तांगा गाड़ी चला करती थी .मेरे दादाजी के पास एक घोड़ा था .वह घोड़े पर आस-पास के गांव इलाकों की सैर पर जाया करते थे .तो घोड़े का जिक्र इसलिए मेरे मन में आया कि मैं यह याद करने लगी कि मेरे पिताजी और चाचाजी लोगों को क्यों इतनी हिम्मत नहीं थी कि दादा जी की डायरी हाथ लगाते . घोड़े पर सवारी के लिए चाबुक चाहिए .न सिर्फ घोड़े को रास्ते पर रखने के लिए बल्कि घुड़सवार अपने आसपास के लोगों को भी डराने के लिए चाबुक का इस्तेमाल करता है .आप समझ गए होंगे कि क्यों हिम्मत ना थी किसी की दादाजी के सामने शैतानी करें .
जब बच्चे बड़े होने लगे तब तक दादा जी बूढ़े होने लगे .पापा जी व अन्य भाई नौकरी करने लगे. खेती भी चाचा लोगों ने संभालना शुरू कर दिया था .गांव में कच्ची सड़क बन गई थी. दादा जी का घोड़ा बिक गया और चाबुक गायब कर दिया गया था. दादा जी की डायरी इस हाथ से उस हाथ जाने लगी थी. उस में लिखे को पढ़कर घर में चर्चा हुआ करती थी और उन्ही चर्चाओं के बीच मैं बड़ी हो रही थी. बच्ची थी तब मैं डायरी पर चल रही चर्चा को ज्यादा नहीं समझ पाती थी क्योंकि मुझमें जरा भी परिपक्वता नहीं थी उन बातों को समझने की. पर मैं डायरी की सकारात्मकता की ओर खींची चली जा रही थी . मुझे दादा जी की दिनचर्या आकर्षित करती थी. कितने बजे उठे ,कब नहाया ,कब योग किया, कब खाना खाया, रात में कब सोए, कहां गए ,क्या पढ़ा ,किससे मिले ,क्या खर्च किया ,किस से कोई खास बात कि ,कौन सी खास बात आपके साथ हुई या किसी और के साथ हुई है आदि उसमें लिखा होता था .
मैंने भी अपनी जिंदगी में महसूस किया कि अपनी दिनचर्या डायरी में लिखती हूं तो समय का सदुपयोग कर पाती हूं. अब की जिन्दगी में मैं मानती हूं कि बहुत बेहतरीन ढ़ंग से जिया है . इस पर मुझे गर्व है .उसमें डायरी लिखने का मैं बहुत योगदान मानती हूं. इतना ही नहीं मैंने समय का सही प्रबंधन डायरी की मदद से कर आज स्वयं को भी चुस्त-दुरुस्त रखे हूं आगे भी रखने की कोशिश है. मैं गाना सीखती हूं नृत्य सीखती हूं मैं एक अच्छी कवियत्री और लेखिका होने का गौरव पाती हूं .घर पर ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हूं और अपने आसपास के गरीब बच्चों की भी मदद करती हूं. मुझे लगता है कि यह बहुत ही बड़ी बात है और सब डायरी में लिख कर समय प्रबंधन कर संभव हुआ और संभव आगे भी होता रहेगा .
यह तो हुआ डायरी का उपयोग समय प्रबंधन के लिए. परंतु डायरी मेरी सब से पक्की सहेली है . मैं अपने दिल की सभी बातें अपनी भावनाओं को डायरी में लिख लिया करती हूं .खासकर जब मैं दुखी होती हूं . आप अपने छोटे - छोटे संताप व खुशियां जो शायद किसी से नहीं बता सकते हैं .उन को जब मैं डायरी में लिख देती हूं तो लगता है कोई मेरे साथ है जो मुझे सुन रहा है मुझे समझ रहा है .एक बार लिखने के बाद जब मैं उन्हें कभी दुबारा पढ़ती हूं तो कभी-कभी खुद पर हंसी आती है कि अरे इस छोटी बात पर मैं दुखी थी और कभी-कभी खुद पर गर्व भी कि अरे मैंने इतनी बड़ी बात को आसानी से संभाल लिया .
अपने भावनाओं को डायरी में लिख कर अभिव्यक्त करना मैंने अपने नाना जी से सीखा. मेरे नानाजी चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़े थे. बेहतरीन मैथिली कवि थे .बहुत लिखा करते थे .हम बच्चों को लिखकर अभिव्यक्त करने की शिक्षा देते थे .हिंदी, अंग्रेजी व अपनी मातृभाषा मैथिली पर हमारी पकड़ अच्छी हो यह सदैव उनका हमारे लिए प्रयास होता था .एक पत्र इन तीनों में से किसी एक भाषा में हम लिखा करते थे और डाक से उन्हें भेजा करते थे . यहीं से अभिव्यक्ति को रच डालना मेरे अंतस में समा गया और अब तक अनवरत है.
लेखन मनुष्य के उत्थान का बेहद सकारात्मक पक्ष है, यह मेरे मन को भली-भांति और भी गहराई से समझ आया जब मैं ने छठी कक्षा की हिंदी की किताब वसंत भाग एक में पढ़ा "संसार एक पुस्तक है" . यह जवाहरलाल नेहरु जी की लिखी " पिता के पत्र पुत्री के नाम " का हिंदी अनुवाद है . उस अध्याय की जिन बातों ने मेरे व्यक्तित्व पर गहरा असर डाला मैं वह पंक्तियां यहां अक्षरशः बताना चाहूंगी . यह मुझे सदैव याद रहे-
" जब तुम मसूरी में हो और मैं इलाहाबाद में ,हम दोनों इस तरह बातचीत नहीं कर सकते. इसीलिए मैंने इरादा किया है कि कभी-कभी तुम्हें इस दुनिया की और उन छोटे-बड़े देशों की जो इस दुनिया में हैं छोटी-छोटी कथाएं लिखा करूं. "
उसी अध्याय की अंत की पंक्तियां इस प्रकार हैं -
"अगर एक छोटा सा रोड़ा तुम्हें इतनी बातें बता सकता है तो पहाड़ों और दूसरी चीजों से जो हमारे चारों तरफ से हमें और कितनी बातें मालूम हो सकती है"
सच में हर रोड़ा मुझे अपनी कहानी सुनाता प्रतीत होता रहा.
ऐसा नहीं कि डायरी लिखने के रास्ते में अड़चनें नहीं है. आप की डायरी पढ़ ली जा सकती है और उससे आप को परेशानी हो सकती है. ऐसा मैं अपने अनुभव से कह रही हूं. जब छठ्ठी कक्षा में थी मां ने डायरी में मेरे लिखी किसी घटना पर खूब डांटा था. एक बार मेरे पति ने भी मेरी डायरी में कुछ पढ़ मुझे बहुत भला बुरा कहा था. ऐसा कई बार हुआ कि जीवन के उतार चढ़ाव में फंस मैंने डायरी लिखना बंद भी किया पर कुछ अंतराल के बाद पुनः शुरू कर दिया.
हर व्यक्ति का अपना एक अलग अनुभव होता है और अपनी एक अलग कहानी होती है . हर छोटी -छोटी बातें भी मेरे लिए एक कहानी कहती रही इस तरह दादा जी से डायरी लिखना ,नाना जी से अंग्रेजी हिन्दी मैथिली में भावनाओं की अभिव्यक्ति रचना तथा चाचा नेहरू से लेखन के माध्यम से जिवन को समझना सीखा. आज के इस तेजी से भागते इलेक्ट्रॉनिक और इंटरनेट के युग में भी मेरे लिए डायरी के पन्ने पर कलम से लिखना और उन्हें पुनः पढ़ना ही मुझे सुकून देता है. इसीलिए कहती हूं कि मेरी बेस्ट फ्रेंड मेरी डायरी है
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