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शायरी और ग़ज़ल

Updated: May 31, 2021

शायरी जिसे शेरो शायरी या सुखन के नाम से भी कहा जाता है मूल भाषा उर्दू में लिखी कविताओं को ही शायरी कहते हैं परंतु इसमें संस्कृत फारसी अरबी और तुर्की भाषाओं के शब्दों का मिश्रित प्रयोग भी किया जाता है

शायरी से संबंधित शब्द

जुमला ः यह पंक्ति का उर्दू नाम

मिसरा ः शेर की पंक्तियों को कहते हैं

शेर ः यह दोनों से बनी कविता का एक अंश होता है जो एक साथ मिलकर कोई भाव दर्शाती है या अर्थ बताती है

शेर का बहुवचन : अशआर )

किसी भी शेर की दोनों पंक्तियाँ को निम्नवत कहते हैं।

(पहली पंक्ति=मिसरा ऊला दूसरी=मिसरा सानी)

पहली पंक्ति=मिसरा ऊला : के प्रथम पद को सदर और द्वितीय भाग को उरूज कहते हैं

दूसरी पंक्ति=मिसरा सानी : के प्रथम पद को इब्तिदा और द्वितीय भाग को ज़र्ब कहते हैं

शेर की दोनों पंक्तियों में कवि अपने पूरे भाव व्यक्त कर देता है वह भाव अपने आप में पूर्ण होना चाहिए उन पंक्तियों को किसी और पंक्ति की जरूरत नहीं होनी चाहिए

एक ग़ज़ल 3 5 या 7 शेरों से मिलकर बनती है यह ध्यान रखा जाता है कि शेरों की संख्या विषम हो सामान्यता 25 तक शेरों की संख्या एक ग़ज़ल में रखी गई है

एक ग़ज़ल के सारे शेर अलग अलग विषय पर हो सकते हैं और परिपूर्ण होते हैं।गजल में हर शेर का मीटर एक जैसा होता है

परंतु यदि सारे शेर एक ही विषय पर हों तो इसे मुसलसल ग़ज़ल कहते हैं।

मतला ः किसी गजल के पहले शेर को मतला कहते हैं इसमें दोनों पंक्तियां तुकबंदी वाली होती है जब गजल में एक से ज्यादा मतले होते हैं तो बाद वाले मतले को हुस्ने मतला या मतला ए सानी कहा जाता है

मकता ः किसी ग़ज़ल के अंतिम शेर को मकता कहते हैं यह सबसे ज्यादा भावुक व प्रभावशाली होता है इसमें शायर अपना उपनाम भी कभी कभी कहता है

बैतत ः मतला को बेत भी कहते हैं इसमें दोनों जुमलों की तुकबंदी होना अनिवार्य है

फर्द ः ग़ज़ल की पहले शेर के बाद वाला शेर जिसमें जुमलों में तुकबंदी करना आवश्यक नहीं है

तकल्लुफ या तकिया कलाम ः यह शायर का अपने लिए चुना हुआ नाम होता है जो अक्सर ग़ज़ल के अंतिम शेर में शामिल कर लिया जाता है ठीक वैसे जैसे कोई चित्रकार अपने बनाए चित्र पर अपना नाम दर्ज कर देता है

मिसाल:-

ग़ालिब की इस कलाम पर गौर फ़रमाएंगे –


१. नुक्तांची है गमे-दिल उस को सुनाए न बने

क्या बने बात जहाँ बात बनाए न बने.

२. मैं बुलाता तो हूँ उसको मगर ए-ज़ज़्बा-ए-दिल.

उस पे बन आए कुछ ऐसी की बिन आए न बने.

३-७ ... ... ... .... ... ... ... ...

८. इश्क पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’

कि लगाए न लगे और बुझाए न बने.

यहाँ आखिरी शेर (क्रम सं.- ८) मकता है जिसमें शायर का उपनाम “ग़ालिब” है (शायर का मूल नाम मिर्जा असदुल्ला खां है)

कसीदा ः किसी की प्रशंसा के लिए लिखी गई शायरी

काफिया ःशेर के दोनों जुमला मैं समान लेकर शब्द का प्रयोग होता है जो दोनों पंक्तियों में एक लय को कायम रखता है जैसे कि

ज़मीन भी आसमान लगने लगी है

तू जब से मेरे साथ चलने लगी है

यहां लगने और चलने यह काफिया है

दोनों शब्दों का वजन समान रखने की कोशिश की जाती है समान ना हो तो भी चलेगा परंतु तुक मिलना ही चाहिए काफिया के शब्द रदीफ़ के पहले आते हैं जैसे सुनाए बनाए आए बुझाए नचाए

काफिया के शब्द एक लय बनाते हैं और उसे हैं बहर कहते हैं

रदीफ ः काफिया के तुरंत बाद आने वाले शब्द या शब्दों के समूह

काफिया ही बदलता है रदीफ़ कभी भी बदलता नहीं है उदाहरण के लिए हम ऊपर दिए गए उदाहरण में देखते हैं लगी है शब्द दोनों ही पंक्तियों में है और यह रदीफ है

कुछ लोकप्रिय शेर

इब्तिदा ए इश्क है रोता है क्या

आगे आगे देखिए होता है क्या

खुदी को कर बुलंद इतना

कि हर तकदीर से पहले

खुदा बंदे से पूछे

बता तेरी रजा क्या है

हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन

खाक हो जाएंगे हम तुमको ख़बर होने तक

मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग

और भी गम है जमाने में मोहब्बत के सिवा

वह जो हम में तुम में करार था

तुम्हें याद हो कि न याद हो

उर्दू की शायरी में कुछ खास ध्वनियों के उच्चारण पर बहुत ध्यान रखा जाता है जैसे नुक्ते़वाला क़ ज़ ग़ ख़ फ़

उर्दू भाषा का व्याकरण मूलतः हिंदी भाषा के व्याकरण पर आधारित है

शेर सही सही लिखने के लिए मात्रा गणना करना आना चाहिए मात्रा की गिनती करके शब्दों को बाहर में व्यवस्थित तरीके से लिखा जाता है

मात्राएं दो प्रकार की होती हैं लघु और दीर्घ

लघु मात्रा को एक और दीर्घ मात्राओं को दो गिनते हैं अनुस्वार वाले वर्ण को भी दो मात्रा गिना जाता है

अर्द्ध वर्ण को शून्य माना जाता है लघु वर्ण के बाद यदि अर्द्ध वर्ण आता है तो उस वर्ण से पहला लघु वर्ण दीर्घ मात्रा गिना जाता है

उर्दू शायरी में शेर जिस तरतीब या मीटर ( उर्दू में बहर) में लिखे जाते हैं वे आठ लघु/गुरु मात्रा समूह (उर्दू में रुक्न , बहुवचन अरकान) हैं जिनमे 3,4 या 5 मात्रा की तरतीब हो सकती हैं

फऊलुन = १, २, २ ... फाइलून = २, १, २

मफाईलुन = १, २, २, २, ... मुस्तफाइलून = २, २, १, २

मुतफाइलुन = १, १, २, १, २ ... फाइलातुन = २, १, २, २

मुफाइलतुन = १, २, १, १, २ ... मफऊलातु = २, २, २, १

इन 8 अरकान से 19 तरह की मूल बहर ( छंद) बनती हैं जिनमें जिहाफ़ लगा कर अनेक बहर बनती हैं।

फ़र्क़ बस इतना कि हिंदी और उर्दू में मात्रा गिनने के तरीके बिलकुल अलग हैं।


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