आपका व्यवहार आपके व्यक्तित्व का दर्पण होता है। दूसरों के साथ किये गये आपके व्यवहार का परिणाम वापस आप को ही मिलता है। ठीक उसी प्रकार जैसा की गीता में कर्मों के फल के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है अर्थात जैसा कहते सुनते आए हैं कि जैसा कर्म करोगे वैसा फल मिलेगा
बातें करने का उदाहरण लेकर समझने की कोशिश करते हैं एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से बातें करने का तरीका किस प्रकार का हो किन शब्दों का उपयोग बातचीत में करते हैं व उन शब्दों का इस्तेमाल किस अंदाज़ में बात करते समय करते हैं उसका परिणाम सीधे-सीधे कई बार मिल जाता है। अगर कहना है "तुम जाओ अब" तो इसे हीं किस अंदाज़ में बोला जाता हैं स्वर ,लय ,चेहरे का भाव आदि का जामा पहन कर हीं एक वाक्य हीं नहीं वरण एक शब्द भी जीवंत होता है और सुनने वाला दुखी हो सकता है, दुश्मन बन सकता है या आप से बेहद प्रेम करने लग सकता है। कहते है ना "यही मुँह पान भी खिलाता है और यही मार भी खिलाता है" ।
अच्छे साहित्य को पढ़ने और महान संतों की वाणी का अध्ययन करने से यह ज्ञान प्राप्त होता है कि सदैव ऐसा व्यवहार किसी के साथ ना करो जो तुम नहीं चाहते कि तुम्हारे साथ वैसा व्यवहार कोई करें ।कबीर दास जी का दोहा है
"ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय।"
इसी प्रकार से हम व्यवहार के बारे में भी कह सकते हैं सोच समझकर सामने वाले के साथ व्यवहार करना चाहिए सदा कोशिश करनी चाहिए कि आपके व्यवहार से सामने वाले को सुकून मिले।
परंतु यह बात भी जीवन में बहुत ही सत्य है कि किसी व्यक्ति का सदैव विनम्र व्यवहार है तो उसका फायदा कुटिल लोग उठाते हैं तथा उन्हें बेइज्जत करने लगते हैं कई प्रकार से बुरा बर्ताव करने लगते हैं तब अच्छा व्यवहार या विनम्रता कायरता में परिवर्तित होती हुई जान पड़ती है कायरता भी तो सही नहीं है ऐसी विनम्रता परेशानी का कारण बन जाती और अत्याचार का सामना तक करना पड़ता है यह कदापि उचित नहीं कि अत्याचार बर्दाश्त करते जाएं। कायर होना भी अच्छे संस्कार नहीं हैं।
अत्याचार का सही समय पर कड़ा विरोध करना आना चाहिए। विरोध करने का व्यवहार सीखना भी बहुत ही जरूरी है कि किसी का विरोध कितनी शालीनता से कितनी सभ्यता से कर सकते हैं। उद्दंड होकर, अपशब्द कह कर तो विरोध प्रदर्शित आसानी से किया जा सकता हैं। परंतु विरोध प्रदर्शन का तरीका भी अगर महात्मा गांधी जी जैसा हो, भगवान बुद्ध जैसा हो तो फिर क्या कहने। यानी कि सत्य और अहिंसा का तरीका
अच्छे व्यवहार सीखने के लिए सदा अच्छी साहित्य पढ़नी चाहिए। संतों की जीवनी पढ़नी चाहिए। महान व्यक्तियों के व्यक्तित्व का अध्ययन करना चाहिए और सिर्फ अध्ययन ही नहीं अपितु उसे जीवन में अपनाना चाहिए और प्रयोग में लाना चाहिए। दोनों ही अवस्था में जब सामने वाला अच्छा व्यवहार कर रहा हो या कोई आप से दुर्व्यवहार कर रहा हो तब प्रतिक्रिया स्वरूप व्यवहार क्या होना चाहिए यह नापतोल कर अपने मन,आत्मा,अध्ययन अपनी सकारात्मक सोच और संस्कार के आधार पर सदा उचित व्यवहार कैसा हो तय करना चाहिए
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
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