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यतः विद्या ततः सुखम

Updated: May 31, 2021

विद्या का अर्थ है सार्थक ज्ञान विद्या को हम किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं रख सकते ना ही परीक्षा पास कर लेना ही विद्या प्राप्त कर लेने की परिभाषा हो सकती है विद्या की परिभाषा किताब और परीक्षा पास कर लेने की सीमा में हम नहीं बांध सकते हैं विद्या सार्थक और सही ज्ञान तो है ही साथ ही यह भी कि यह ज्ञान स्पष्टता उज्जवलता निर्मलता शुद्धता की ओर अग्रसर होना चाहिए ज्ञान में कोई दोष ना हो और ज्ञान जो अज्ञान के अंधकार से हमें मुक्त करें ज्ञान जो पारदर्शी हो निष्कलंक हो निर्बाध हो अर्थात जिस में कोई रुकावट ना हो वह विद्या है अविद्या विद्या का विलोम है और अविद्या है अज्ञान अशिक्षा असभ्यता अनभिज्ञता तथा झूठ पर यकीन हो जाना

विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।

पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥

यह संस्कृत का श्लोक विद्या को सबसे सही अर्थों में व्याख्या करता है इसलिए इस की लोकप्रियता साधारण जन जन तक है इसका शाब्दिक अर्थ तो लगभग सभी समझते हैं परंतु जो विद्वान होते हैं वह इसके आध्यात्मिक और गूढ़ रहस्य को जानकर लाभ प्राप्त करते हैं


हिंदू धर्म में ज्ञान की देवी, सरस्वती है और सफेद साड़ी में दिखाई जातीं हैं, सफेद कमल के फूल पर बैठी है । सफेद हंस को उनके वाहन के रूप में दिखाया जाता देवी के हाथों में वीणा विराजमान होता है एक हाथ में जप माला रहती है चारों वेदों को उनके हाथों में दिखाया जाता है

दरअसल सफेद रंग इंद्रधनुष के सात विभिन्न रंगों का संयोजन है; इसलिए यह प्रत्येक रंग की गुणवत्ता का एक छोटा सा प्रतीक है । यह शांति, पवित्रता, स्वच्छता, और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है । अन्य मुख्य देवताओं को भी उनकी पोशाक पर सफेद का थोड़ा स्पर्श होगा ।

सफेद हंस विवेक का प्रतिनिधित्व करता है जब हमारे पास होता है तो हम अच्छे और बुरे में अंतर समझने का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं अपने विवेक से हम हमेशा सच्चाई अच्छाई व सकारात्मकता का ही चुनाव करते हैं सफेद हंस पवित्र आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है जो हर जीव में विद्यमान हैं

वीणा भाषा स्वर लय कला सुंदरता का प्रतिनिधित्व करती है इस संसार में उनके बिना हम कोई ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते हैं जपमाला भी बिजाक्षर अर्थात अक्षरों का प्रतिनिधित्व करती है जपमाला विश्वास और समर्पण का भी प्रतिनिधित्व करती हैं चारों वेदों अर्थात ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद यह ज्ञान विज्ञान व बुद्धिमता का स्रोत है कमल रचनात्मकता का प्रतिनिधित्व करता है कमल हमें सीख देता है कि इस दलदल भरी दुनियादारी में हमें कैसे स्वच्छ व साफ रहना चाहिए देवी सरस्वती मातृशक्तियों और अध्यात्म आत्मशक्तियों में उत्कृष्ट और सर्वोपरि है मां प्रकृति है मां विद्या दायिनी है

जीवन में समय के साथ साथ जीते हुए हम कई तत्व का सामना करते हैं और उसकी अच्छाई बुराई आदि के सच को समझने की कोशिश करते हैं बहुत ही जरूरी और बहुमूल्य जानकारी इकट्ठे करते हैं यह जानकारियाँ हमारे ज्ञान के भंडार में एकत्रित होती जाती हैं और हम अपने ज्ञान के भंडार के कारण समझदार व अकलमंद बनते हैं समझदार और अक्लमंद बनाना बुरे कामों को करने के लिए नहीं अपितु अच्छे कामों को करने के लिए बुरे कामों को करने के लिए जो अकल हम उपयोग में लाते हैं उसे किसी भी तरह से हम नहीं कह सकते कि ज्ञान के भंडार के कारण उपजी हुई यह अकल या समझदारी है बुरे कामों को करने की अकल तो सर्वथा ही व्यर्थ है हम अपनी अकलमंदी वह समझदारी से जो अच्छे काम करते हैं वही हमें आत्मा की समझ देती है और जब हमें आत्मा की समझ होने लगती है तो हम परमात्मा को समझने लगते हैं हर व्यक्ति ज्ञान को इकट्ठा कर लेने से ज्ञानी नहीं बन जाता है जब तक कि उस का उपयोग किसी अच्छे कार्य के लिए न किया जाए ज्ञान के समुचित उपयोग के लिए आवश्यक है कि अहम और अहंकार का ना होना अहंकार और ज्ञान एक दूसरे के दुश्मन हैं जहां अहंकार होता है वहां ज्ञान कदापि नहीं टिक सकता और जहां ज्ञान बसता है वहां अहंकार कदापि नहीं रह सकता

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