साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः ।
तृणं न खादन्नपि जीवमानस्तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥
Home
photography
book
साहित्य
Subscribe
Contact
More
(एक विचार)
🌼 भक्तिमय 🌼(तांका)
Untitled
परीलोक
तेरा नाम हीं बहुत है
Stay up to date
admin@sahityakiran.com
or
rashmikiran@outlook.com
Your details were sent successfully!